'पैरेंटिंग' की खतरनाक परंपरा और बच्चे


गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में मशीन बनते जा रहे बच्चों के बारे में माता-पिता, अभिभावकों, प्रीस्कूलों, स्कूलों-कॉलेजों सहित हम सबको एक बार पुनः अपनी जिम्मेदारियों के बारे में सोचने की जरूरत है. ये इसलिए जरूरी है क्योंकि मूल्यों की गिरावट और विनाशकारी विकास की ओर अग्रसर होती दुनिया के लिए ये बच्चे ही आखिरी उम्मीद है.दरअसल ये बच्चे ही भविष्य हैं. इन बच्चों के बारे में हमें आज और अभी से विचार करने की जरूरत है अन्यथा बहुत देर हो जाएगी. इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी धारणा बदलनी होगी, जो हमारे अंतस में कहीं गहरे धंसा हुआ है. यहां मैं 'परेटिंग का खास तौर पर जिक्र करना चाहूंगा. आजकल ये शब्द बहुत प्रचलन में हैं. आमतौर पर लोग इस पैरेटिंग को जिम्मेदारी, देखभाल, उचित विकास से जोड़कर देखते हैं, लेकिन मामला है इसके एकदम उलट. ये शब्द पहली बार 1958 में अमेरिका में उभरा और 1970 के दशक में आम हो गया. वास्तव में पैरेंटिग एक भयानक आविष्कार है. इसने बच्चों और माता-पिता केजीवन में सुधार नहीं किया, बल्कि उन्हें और भी खराब बना दिया. एक माता-पिता के लिए अपने बच्चों को योग्य बनाने की कोशिश करना निराशा के साथ अंतहीन चिंता और अपराध का कारण बन जाता है.


अमेरिका की प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एलिसन गोपनिक ने अपनी पुस्तक 'द गार्डनर एंड द कारपेंटर में बच्चों के विकास के संबंध में माता-पिता की भूमिका के बारे में विस्तार से चर्चा की है. वह कहती हैं कि माता-पिता के रूप में हमारा काम एक विशेष प्रकार का बच्चा नहीं बनाना है. इसके बजाए हमारा काम प्यार, सुरक्षा और स्थिरता का वातावरण प्रदान करना है, जिसमें बच्चे स्वयं अपना विकास कर सकें. हमारा काम बच्चों के दिमाग को आकार देना नहीं है, बल्कि उन्हें दुनिया की सभी संभावनाओं के बारे में पता लगाने देना है. गोपनिक माता-पिता की तुलना एकमाली से करती हैं, जो बगीचे की देखभाल करता है. एक माली पौधों के आस-पास घास-फूस नहीं बढ़ने देता है; पौधों को आवश्यकखाद-पानी देता है, और उसे अपने आप बढ़ने देता है. इसके अलावा माता-पिता को यह भी समझना होगा कि बच्चे हमसे नहीं, बल्कि बच्चों से हम सीख सकते हैं. वैज्ञानिक प्रक्रिया के अनुसार बच्चों का दिमाग हमसे कहीं तेज चलता है और वे हमेशा एकनई दुनिया का निर्माण करते हैं. गोपनिक की इस परिभाषा के हिसाब आज के माता-पिता को देखें तो मामला बहुत उल्टा नजर आता है. 'पेरेंटिंग के प्रचलन ने उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदार और खतरनाक शुभचिंतक बना दिया है, जिससे बच्चे बच्चे नहीं रह गए हैं. इसके अलावा हमें एक बार दुनिया के सबसे कामयाब बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए कि वे उस जगह कैसे पहुंचे. अधिकतर रिसर्च की रिपोर्ट में मिलता है कि जिन बच्चों ने संघर्ष किया और भारी मुश्किलें झेली, वे सबसे ऊंची पायदान तक गए. हालांकि माता-पिता की अतिरिक्त चिंता ने भी बच्चों को सफल बनाया है, लेकिन उसकी अंतिम परिणति बहुत अच्छी नहीं रही. इस बार की आवरण कथा इसी विषय से प्रेरित है. इस अंक में हमने उन बच्चों की चर्चा की है, जिन्होंने अपने दम पर एक अलग मुकाम बनाया है. उम्मीद है यह अंक बच्चों के माता-पिता को भी प्रेरित करेगा.