कोई बाधा इतनी बड़ी नहीं होती कि इंसानी हौसलों को पस्त कर दे. हौसलों की इसी कहानी को जब कुछ लोग लिखते हैं तो कुदरत से मिली किसी कमी के बावजूद उनके हौसले बुलंदी पर होते हैं.
'कैसे आकाश में सराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो.' दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां ह. सालों की एक कहानी बयान करती हैं. जिंदगी में हौसलों की अहमियत बताती हैं. हौसलों की इसी कहानी को अपने जीवन में सच कर दिखाया है प्रांजल पाटिल ने. वह अपने हौसलों के बते देश की पहली नेत्रहीन आइएएस अधिकारी बनने में कामयाब हई हैं. उन्होंने अपनी आंखों की रौशनी न होने के बावजूद अपने जीवन के अंधकार को अपना जीवन नहीं बनने दिया, बल्कि उन्होंने अंधेरों से बुलंदी की ओर अपनी उड़ान को साहस, इच्छा शक्ति के साथ बनाए रखा और विजय हासिल की. महाराष्ट्र के उल्हास नगर की प्रांजल केरल कैडर में नियुक्त होने वाली पहली दृष्टि बाधित आइएएस अधिकारी हैं. उन्होंने तिरुवनंतपुरम में सब कलेक्टर के तौर पर पदभार संभाला है.
उन्होंने यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773 वीं रैंक हासिल की. प्रांजल का कहना है कि 'मैं पूरी ईमानदारी से अपना काम करूंगी. इंसान को कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. आप जो सोचें, वह पूरा हो सकता है, बस लगन होनी चाहिए.' ग्रेजुएशन के दौरान प्रांजल ने यूपीएससी की परीक्षा से संबंधित जानकारियां जुटानी शुरू की. हालांकि यह उन्होंने किसी को बताया तो नहीं, लेकिन उन्होंने मन में ठान लिया था कि उन्हें आइएएस परीक्षा में बैठना है और देश की सेवा करनी है. इस बीच उन्होंने अक्षम लोगों के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर की भी मदद ली.
कभी रेलवे की परीक्षा में असफल होने वाली प्रांजल ने मात्र 28 वर्ष की उम्र में आइएएस परीक्षा पास कर साबित कर दिया कि हौसलों की जीत होती है. वह कहती भी हैं, 'सफलता आपको प्रेरणा नहीं देती, बल्कि सफलता के लिए किए गए संघर्ष से प्रेरणा मिलती है.' ऐसा नहीं है कि उनकी दष्टि शुरू से ही कमजोर रही हो. दरअसल, 6 साल की उम्र में उनकी आंखों की रौशनी पूरी तरह से तब चली गई जब उनके एक सहपाठी ने उनकी आंख में पेंसिल मार कर उन्हें घायल कर दिया था. इससे उनकी एक आंख की दृष्टि जाती रही. मगर डॉक्टर ने भविष्य में उनकी दूसरी आंख की रौशनी को भी खतरा बताया था और ऐसा हुआ भी. इस घटना ने प्रांजल को पूरी तरह तोड़ कर रख दिया, लेकिन फिर उन्होंने खुद को संभाला और अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया. उन्होंने खास बच्चों के लिए संचालित मुंबई के श्रीमती कमला मेहता स्कूल से पढ़ाई की. इसमें ब्रेल लिपि की सहायता से बच्चों को शिक्षा दी जाती है.