राजस्थान, ब्यूरो | राज्य सरकार के बच्चों के बेहतर शिक्षा के दावे कागजों में ही नजर आ रहे है। दावों की हकीकत ये है कि प्रदेश में सरकारी स्कूल खुले चार माह बीत गए, लेकिन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के छात्रावासों में रहने वाले विद्यार्थियों को अब तक न तो यूनिफॉर्म मिली और न ही जूते-मौजे। नहाने के टॉवल भी नसीब नहीं हुए। सर्दी शुरू होने वाली है, लेकिन नवम्बर के पहले सप्ताह में मिलने वाली जर्सियां भी नहीं पहुंची हैं। ये हाल प्रदेशभर में विभाग के अधीन संचालित सभी 654 छात्रावासों के हैं। इनमें अनुसूचित जाति, जनजाति व ओबीसी वर्ग के विद्यार्थी रह रहे हैं। इनमें भीलवाड़ा जिले के ३७ छात्रावासों के 1600 बच्चे शामिल हैं।
प्रदेश में अब तक इन छात्रावासों के विद्यार्थियों की सुविधाओं के सामग्री की खरीद जिला स्तर पर थी। हाल ही सरकार ने इस व्यवस्था को जयपुर में केंद्रीकृत कर दिया। इसी का नतीजा है कि शिक्षा सत्र के चार माह बीतने के बाद भी बच्चों को यूनिफॉर्म, जूते-मौजे आदि नहीं मिल सके हैं।अटक रहा बजट अब तक विभाग जुलाई में खरीद करता है। इसके लिए प्रति विद्यार्थी सालाना १९०० रुपए सरकार देती है। इसी प्रकार दूध, साबून, तेल, बिजली खर्च का खर्च भी विभाग उठता है। इसके लिए सरकार एक विद्यार्थी के लिए प्रतिमाह दो हजार रुपए का बजट जारी करती है। आपको बता दें कि स्कूल खुलने के चार माह बाद भोजन, दूध, सब्जी, तेल, साबून व बिजली का बजट आया। ऐसे में बच्चे घर से रुपए मंगाकर काम चला रहे थे। कुछ वार्डन ने भी मदद की। इसे लेकर कई बच्चे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के साथ ही शिक्षा विभाग कार्यालय के चक्कर लगा चुके हैं। इन हालात से अभिभावक भी परेशान हैं।